क्या हिंदी भाषा का महत्त्व कम हो रहा है ?
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जैसा की हम सब जानते ही हैं की हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है , वहीं हम इस बात को भी झुटला नहीं सकते के आज-कल इंग्लिश का बोलबाला भी ज्यादा हो रहा है। हिंदी मैं एक कहावत है के " खरबूजा को देख के खरबूजा रंगा बदलता है " ऐसा ही कुछ हम भी हमारे आस पास के माहौल के देख के हम लोग भी रंग बदल रहें हैं| मान लो के मुझे हिंदी अच्छी खासी बोलनी आती हो पर किसी को प्रभावित करने के चक्कर में ,अपने आप को पड़ा लिखा दिखाने के लिए मैं कभी कभी या यूं कहूँ के अकसर इंग्लिश के कुछ शब्दों का प्रयोग कर ही लेता हूँ ,जबकि घर मैं तो पूरी हिंदी ही चलती है, पता है आजकल ऐसा हो गया है के आपको हिंदी की अच्छी से अच्छी जानकारी हो आपके पास बहुत सारा ज्ञान हो , मगर आप इंग्लिश नहीं बोल सकते बात नहीं कर सकते हो तो आपको समाज मे आपकी नौकरी मैं अच्छी इज्जत और अच्छा सा ऊँचा ओहदा न मिले वहीं अगर आप फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हों तो देखिये जरा सारा नजारा ही बदल जायेगा |
मैं अगर मैं यूं कहूँ के हिंदी भाषा का चलन कम हो गया है, तो यह कहना बिलकुल गलत होगा कुछ हद तक तो माना जा सकता है | जैसे की मैंने भी तो अपने विचार इस ब्लॉग को लिखने के लिए हिंदी भाषा को ही चुना क्योंकि इस हिंदी भाषा में मैंने एक खास बात महसूस की है के आप अपने मन की सारी बात जितनी आसानी से हिंदी मैं व्यक्त कर सकतें है दूसरी किसी अन्य भाषा मैं आसानी से व्यक्त नहीं कर सकते | हाँ हम यूं जरूर कह सकतें हैं की हिंदी भाषा का चलन धीरे धीरे कम करवाया जा रहा है,प्ले स्कूल से लेकर हमारे आपके ऑफिसों मे भी इंग्लिश अपनी पकड़ बना रही है | आप मानो या मानो हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो कोई भी बोल सकता है और आसानी से समझ भी सकता है जैसे की कोई अंग्रेज भारत घूमने आने किसी से बात करते समय पर अंग्रेजी मैं जब समझा नहीं पाता तोह वह हिंदी मैं थोड़ा थोड़ा सा बोल के काम चला ही लेता है |
हमारे भारत में सबसे ऊंचे दर्ज़े की परीक्षा - सिविल सर्विस (UPSC) की परीक्षा मानी जाती है । आंकड़ों के अनुसार नब्बे के दशक में इसमे हिंदी के माध्यम से परीक्षा देकर पास करने वालों की संख्या अधिकाधिक रूप में लगभग ६०-७० प्रतिशत थी वहीं आज यह संख्या घटकर २५ - ३० प्रतिशत के बीच सिमट के रह गयी है। तो यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या हिंदी माध्यम के छात्रों का पढ़ाई की तरफ से रुझान ख़तम हो गया या फिर उन्हे ऐसा माहौल ही नहीं मिल रहा के वे उस स्तर की तैयारी कर सके ? अगर इसी तरह से हिंदी माध्यम से परीक्षा देकर से सफलता प्राप्त करने वालों का स्तर यूँही घटता रहा तो आगे चलकर तोह यह स्तर और भी कम हो जायेगा और आगे आने वाले छात्र हिंदी माध्यम से कैसे सिविल सर्विस पास करने के लिए कैसे प्रोत्साहित होगा।
देखो सरकारी जॉब का तो पता नहीं पर आजकल प्राइवेट जॉब मैं कहीं भी इंटरव्यू के लिए चले जाइये इंटरव्यू तो अंग्रेजी मैं ही देना पड़ेगा भले ही ज्वाइन करने के बाद से लेकर उस नौकरी को छोड़ने तक आपको अंग्रेजी की जरूरत ना पड़े | और यह चलन तो ब्रिटिश काल से ही चला आ रहा है उस ज़माने मै अंग्रेजी बोलने समझने वालों को ही अच्छी नौकरी दी जाती थी इसी के चलते न जाने कितने भारतियों ने अच्छी से अच्छी अंग्रेजी सीख के पढाई करके नौकरियाँ प्राप्त की थी बस वह दौर था और आज का दौर है के हम भारतीय आज भी है जो आज़ादी के पहले कर रहे थे |
जैसा की आप और हम जानते हैं की चीन ,जापान हमारे भारत से विकास टी तुलना मैं आगे हैं उसका ख़ास कारण उनकी वहां की अपनी भाषा को महत्त्व देना जानकारी के अनुसार जैसे के चीन,जापान,फ्रांस जैसे कई और भी अन्य देश अपनी भाषा को सबसे अधिक वरीयता देते हैं चाहे वह रोजगार के क्षेत्र हो या शिक्षा का या फिर रिसर्च का। वह ये जानते हैं कि मौलिक सोच अपनी ही भाषा मे विकसित हो सकती है। तो भला फिर हम भारतवासी अपनी हिंदी भाषा से क्यों कतराएं ? अरे मैं तो यूं कहूंगा के जब तक काम चले हिंदी से हे चलाएं बहुत मजबूरी हो तोह हे अंग्रेजी बोलें
अच्छा मैं जानना चाहता हूँ के आप सब यह तो नहीं समझते की कि गूगल, फेसबुक, ट्विटर, क्वोरा या उसके जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के लिए हमे अंग्रेज़ी का अच्छा ज्ञान होना जरूरी है,अगर आप ऐसा समझते है तो गलत है हम भारतवासी इतनी बड़ी आबादी मै है कि बड़ी बड़ी कंपनियों ने भी इस बात का ध्यान रक्खा है और कई कंपनियों ने अपने सॉफ्टवेयर / ब्राउज़र विब्भिन विब्भिन भाषा मे बनाने शुरू कर दिए हैं जिनको हम जिस भाषा मैं चाहें उस भाषा मै इस्तेमाल कर सकें आज ऐसा हो भी रहा है। नीचे फोटो मै मैंने कोशिस की है आप देख सको के भाषा चयन कैसे और कहाँ से किया जा सकता है |
कुल मिला के मैं कहना चाहूंगा के हम अपनी राष्ट्र भाषा से प्रेम रक्खें हमारा यह प्रयास हमारी मातृभाषा के अस्तित्व को बनाये रखेगी।
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